–दूसरा दिन माता ब्रहमचारिणी की पूजा का होता है. माता ने अपने इस रूप मे भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था । इस दिन माता को शक्कर का भोग लगाया जाता है तथा इसी का दान किया जाता है. माता के इस रूप का पूजन लंबी आयु प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
यह मां दुर्गा का तीसरा रूप है। माथे पर अर्धचंद्राकार का घंटा विराजमान होने की वजह से इन्हें चंद्रघंटा नाम से जाना जाता है। दस हाथों के साथ मां अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित हैं। इनकी पूजा करने से वीरता, निर्भयता के साथ ही सौम्यता का प्रसार होता है। इनका वाहन शेर है। राक्षस महिषासुर का वध देवी चंद्रघंटा ने ही किया था।
यह मां दुर्गा का पांचवा रूप है। भगवान शिव और माता पार्वती के छह मुखों वाले पुत्र स्कंद की मां होने के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। इनकी चार भुजाएं हैं जिनमें एक में इन्होनें एक हाश में स्कंद को, दूसरे में कमल का फूल पकड़ा है। ये कलम के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। इनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग आसान होता है।
माता दुर्गा का छठा रूप है मां कात्यायनी का। कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लेने से इनका नाम कात्यायनी पड़ा। स्वर्ण से चमकीले रंग वाली देवी की चार भुजाएं हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी पूजा करने से चारों पुरुषार्थों यानि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।